लाहौर पाकिस्तान को रियासत-ए-मदीना बनाने का वादा करके सत्ता में आए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान नियाजी का यह 'नया पाकिस्तान' धार्मिक रूप से अल्पसंख्यकों के लिए 'काल' बन गया है। सेंटर फॉर सोशल जस्टिस के ताजा आंकड़ों के मुताबिक पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून का दुरुपयोग बेतहाशा बढ़ा है। संस्था ने कहा कि वर्ष 1987 से लेकर दिसंबर 2020 के बीच कम से कम 1855 लोगों को इस काले कानून का शिकार बनाया गया है। इमरान खान के सत्ता में आने के बाद साल 2020 में ईशनिंदा कानून के 200 मामले सामने आए हैं जो किसी साल में अब तक का सबसे अधिक आंकड़ा है। इनमें से 75 फीसदी पीड़ित मुस्लिम हैं और इसमें से भी 70 फीसदी लोग शिया समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। इसके अलावा अहमदी समुदाय के 20 फीसदी, सुन्नी 5 प्रतिशत, ईसाई 3.5 प्रतिशत और हिंदू 1 प्रतिशत हैं। ईशनिंदा के नाम पर पाकिस्तान में कम से कम 78 लोगों की हत्या ताजा ट्रेंड यह बताते हैं कि मुस्लिम अब गैर मुस्लिमों को निशाना बनाने की बजाय अन्य मुस्लिमों पर इस काले कानून का दुरुपयोग कर रहे हैं। अब कोई भी अल्पसंख्यक गुट इस काले कानून की जद में आने से नहीं बचा है। ट्रेंड यह भी बताते हैं कि पाकिस्तान में विभिन्न समुदायों के बीच में मतभेद और धर्म का दुरुपयोग बढ़ रहा है। इन सबके बीच दोषपूर्ण कानून नागरिकों के लिए संकट का विषय बन गया है। वर्ष 1987 से अब तक सबसे ज्यादा ईशनिंदा के मामले (76 फीसदी) पंजाब राज्य से आए हैं और 19 फीसदी मामले सिंध से आए हैं। पंजाब की जेलों में दिसंबर 2020 में 337 लोग ईशनिंदा से जुड़े मामलों में बंद थे। यही नहीं ईशनिंदा के नाम पर पाकिस्तान में कम से कम 78 लोगों की हत्या कर दी गई। इसमें 42 मुस्लिम, 23 ईसाई, नौ अहमदी और दो हिंदू थे। पाकिस्तान में ईशनिंदा के नाम पर अक्सर पैसा जमा किया जाता है और लोगों में नफरत फैलाई जाती है।
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